रात कि कालि चादर से ...उजाला नंगे पाँव धीरे से आता है....
...सहमें दिलोएँ कि धड्कनोएँ से ...होसला उभर ही जाता है...
....बेदर्द ज़माने कि ठोक्रोएं में...इंसान शीशो का ख्वाब बनता है... .
..लाख तपिश हो ..पर वह ख्वाब सांचे में ढल ही जाता है....
....मुश्किलोएँ से घबरा कर भी....चलने वाला तूफ़ान पार कर ही जाता है...
...दर्द के बजारोएँ से...कारवां गुज़र ही जाता है....
....सुकून तोएं बहुत है मयखाने में...पर संभलने वाला..संभल ही जाता है.... ..सहमें दिलोएँ कि धड्कनोएँ से ...होसला उभर ही जाता है......
Tuesday, December 11, 2007
armaan
अरमानोय के बाज़ार सजा देता हुं....में अपने हर गम को सजा देता हुं.....
...जिंदा रहतें थें कई ख्वाब ..इशारे से तेरे...आन्खोएँ को वोही ख्वाब दिला देता हुं.....
....कहने को जो अपना आशना था ..कभी..में उद्सकी हर दिवार गिरा देता हुं....
.....सोयें है जो ज़ज्बात ...उठा देता ह...में फिर से दुश्मन को पनाह देता हुं....
...एक बार दोबारा कर के यकीन...में अपने ज़ख्मोएँ को हवा देता हुं........
समय के टूटे ज़र्रोएँ से में...कायनात बना देता हुं.........
अरमानोय के बाज़ार सजा देता ह....में अपने हर गम को सजा देता हुं.....
...जिंदा रहतें थें कई ख्वाब ..इशारे से तेरे...आन्खोएँ को वोही ख्वाब दिला देता हुं.....
....कहने को जो अपना आशना था ..कभी..में उद्सकी हर दिवार गिरा देता हुं....
.....सोयें है जो ज़ज्बात ...उठा देता ह...में फिर से दुश्मन को पनाह देता हुं....
...एक बार दोबारा कर के यकीन...में अपने ज़ख्मोएँ को हवा देता हुं........
समय के टूटे ज़र्रोएँ से में...कायनात बना देता हुं.........
अरमानोय के बाज़ार सजा देता ह....में अपने हर गम को सजा देता हुं.....
guzarish
कतरा-कतरा लहू का आफताब-ए-आग्होश पै रख दीया ग़ालिब....
आहिस्तह-आहिस्तह महक रहा है साँसों में तेरे उढ़ता हुआ लहू....
वह जो बिखर गयी है चेहरे पे तेरे तबस्सुम-ए-चांदनी....
हुआ है रोशन कोई चिराग कब्र पे मेरी गुजारिश-पे-यार की.........
आहिस्तह-आहिस्तह महक रहा है साँसों में तेरे उढ़ता हुआ लहू....
वह जो बिखर गयी है चेहरे पे तेरे तबस्सुम-ए-चांदनी....
हुआ है रोशन कोई चिराग कब्र पे मेरी गुजारिश-पे-यार की.........
अस्फार सा रहता है रंग-ए-फ़ेज़ा का अशद-ए-बहार में....
जाने किस असरार को छुपाये रहती है हर घडी.....
सुर्ख आन्खोएँ के पानी से गाफिल है समंदर.....
इसबात नही असलान किस-किस के इशरत-ए-रफ्ता से लबालब है समंदर .........
वीरानी के भी आलम में रह दर्द का अंसार....
लोग कहतें है कि मिट गया वुजूद-ए-साजिद का ऐ-साकी...
बंद है होठ तोएं क्या मयखाने में अभी व्ख्त-ए-सुरूर का है बाक़ी..............
जाने किस असरार को छुपाये रहती है हर घडी.....
सुर्ख आन्खोएँ के पानी से गाफिल है समंदर.....
इसबात नही असलान किस-किस के इशरत-ए-रफ्ता से लबालब है समंदर .........
वीरानी के भी आलम में रह दर्द का अंसार....
लोग कहतें है कि मिट गया वुजूद-ए-साजिद का ऐ-साकी...
बंद है होठ तोएं क्या मयखाने में अभी व्ख्त-ए-सुरूर का है बाक़ी..............
gharonda
रहता हू घर में रेत के खाता नही खौफ लहरों से....
शब-ए-क़यामत में भी तलाश-ए-जूनून कि करता ह दर-बदर....
ठहरे ही दरिया में जब उभर आती है चांदनी....
सर्द हवओएँ में फिर जग जाती है कशिश-ए-यार कि....
गुमनाम से चेहरे को दिया वक़्त ने हुनर-ए-क़त्ल का....
घिरा रहता ह क़तिलोएँ से और रंजिश का सबब पूछता ह.......
में अपने मुक़द्दर से घबरा के तुझे ढूँढता ह....
शब-ए-क़यामत में भी तलाश-ए-जूनून कि करता ह दर-बदर....
ठहरे ही दरिया में जब उभर आती है चांदनी....
सर्द हवओएँ में फिर जग जाती है कशिश-ए-यार कि....
गुमनाम से चेहरे को दिया वक़्त ने हुनर-ए-क़त्ल का....
घिरा रहता ह क़तिलोएँ से और रंजिश का सबब पूछता ह.......
में अपने मुक़द्दर से घबरा के तुझे ढूँढता ह....
Anjaan raastey
मचल उठी है तम्मानाएं फिर जागी है ख्वाहिशे...
फिर होगी रूह-ए-तक्थ पर वोही दौर-ए-आज्मयिशेय...
भटकते रहे उम्र भर हमसफ़र कि आस में....
बोलते रहे कुछ हम खुद ही से कुछ विरान रास्ते....
कदम चलते-चलते रूक से गए आहट पे यार कि....
बिखर बिखर के फिर चल दिए अनजान रास्ते.....
फिर होगी रूह-ए-तक्थ पर वोही दौर-ए-आज्मयिशेय...
भटकते रहे उम्र भर हमसफ़र कि आस में....
बोलते रहे कुछ हम खुद ही से कुछ विरान रास्ते....
कदम चलते-चलते रूक से गए आहट पे यार कि....
बिखर बिखर के फिर चल दिए अनजान रास्ते.....
my poem
हक ए रंजिश का भी रहने ना दिया मुझसे रंजिश करे कोई इद्स काबिल मुझे रहने ना दिया कुछ देर तोएं तनहा था मगर तेरी यादोएँ ने मुझे रहने ना दिया मयकदे तक जाते है हम और लॉट आते है तेरी मदभरी आन्खोए ने हमें मय के काबिल भी रहने न दिया लोग कहते मुझे दीवाना पर डर्र ए रुसवाई का तेरे दीवाना भी हमें कहने ना दिया........
my shayaris
...yoon toen har roz hi shaam hoti hai..... vaqt ki ghadi sansoen ke naam hoti hai.... phir raing kar chalti hai rooki rooki si khwahishey.... dekhein yeh zindagi ab kiske naam hoti hai..........
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