....चाँद को देख कर ...तारे टिमटिमाते है......
...घडी से कूद क्रर ....लम्हे निकल जाते है......
....वोही दर है..वोही शाम....वोही मिजाज़.....वोही आतिश...
...लौट कर आयेंगे मुझसे बोल कर..... सब दोस्त चले जाते है.....
Thursday, December 31, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)