Thursday, July 29, 2010

zakhm...

.....ज़िन्दगी के है ज़ख्म....और वक़्त का मरहम है......
....जलता हुआ दिल है .....और आँख का पानी है  .....
.....रूह कब तलक जिस्म के आचल में छुपेगी ......
.....कतरा कतरा लहू का ..जैसे तेज़ कटारी है ......

mera saaya....

.....मेरा साया ही मेरा दुश्मन है .........अंधेरे से है दोस्ती मेरी .....
....कुछ लोग तस्सवर में  आ गए देखो......मुझको रौशनी दिखलाने के लिए ..... 
...यूं तो मिलता नहीं सुकून  ज़माने को ....दर्द की महफ़िल में....
....दोस्त बन कर मिलते है ....दुश्मनी निभाने के लिए...
......कोई चिराग जला गया देखो .... मेरे साए को जगाने के लिए.......

...कुछ लोग तस्सवर में आ गए देखो.....मुझ को रौशनी दिखलाने के लिए .....

muqaddar .....

....देख कर मुझको मुक़द्दर भी सहम जाता है ......
....दिल  धडकता है जब आँखों में लहू आता है....
.......मेरी ज़िन्दगी है या रेत  का घरोंदा......
...में बनाता हु  आशना जब सागर में तूफ़ान आता है....

.....यूं ही जागा हु सदियों से  सोया नहीं हु मै ......
........नींद लगती है मुझे और ख्वाब बिखर जाता है .......
....गिनता रहता हु हर लम्हा वक़्त की विरासत है.....
.......सुकून आता है जब दर्द हद से गुज़र जाता है......

देख कर मुझको मुक़द्दर भी सहम जाता है .....
...दिल धड़कता है जब आँखों में लहू आता है ......