...वोह सोख सदी बीत गयी अपने से चमन की.....ज़माने से अपना भी कहा नाम लेता हु.....
.में अपनी तन्हाई में समां बाँध लेता हु....कुछ देर रूकता हु कही तो यह जान लेता हु...
...दर पर रही है गूँज तेरे देर तक फ़रियाद.....गुमनाम आवाजो में गुम है मेरी आवाज़.....
..में अपनी हथेली में जहा बाँध लेता हु....भूली हुई सदियों के निशाँ थाम लेता हु.....
.में अपनी तन्हाई में समां बाँध लेता हु....कुछ देर रूकता हु कही तो यह जान लेता हु.......
कहते है मुझसे लोग कातिल नहीं हु में ...वोह और था मंज़र तबियत अजीब थी......
...में अपने गुनाहों की सजा मीन लेता हु......में अपनी तन्हाई में समां बाँध लेता हु. ....
....कुछ देर रूकता हु कही तो यह जान लेता हु.....