Thursday, December 13, 2007

IZAZAT...

....दबी दबी सी हसी...चेहरे पर शरारत क्यों है....
.....लब्जो की खामोशियोएँ में ..इतनी हिफांज़्त क्यों है....
.....हर सांस मोहोब्बत है....तोएं फिर यह इबादत क्यों है....
...ऐ खुदा कातिल को मेरे ...हँसने की इजाज़त क्यों है.....

SHAAM

यूँ तोएं हर रोज़ ही शाम होती है.....
वक़्त कि घडी संसोएँ के नाम होती है....
फिर रेंग कर चलती है रुकी रुकी सी ख्वाहिशे....
देखें यह ज़िंदगी अब किसके नाम होती है..........