Sunday, May 15, 2011

nishaan...

".....धुप के आँगन से वह किरणों के निशाँ ढूंढता है......
........नदियों की आवाजों से वह कुदरत की जुबान ढूंढता है ....
.......इंसान ने कायनात में बांधी है कुछ कमज़ोर लकीरे
...... क्या खुदा ज़न्नत में भी सरहद के निशाँ ढूंढता है........" 

Tuesday, January 11, 2011

aaftab...

.....जब ढलता हुवा सूरज कायनात से घबराएगा.....
....रात के गहरे अंधेरो में वह चिरागों में नज़र आएगा ....
....जब हार के तकदीर से परवाना झुलस जायेगा ....
......आसमान नया रंग नए काफिले बनाएगा.....
.......होसला कर के इंसान जब तकदीर से टकराएगा .......
......... नया किस्सा..नया सवेरा...नया इतिहास बन जायेगा.....

hissa...

...आज ख्वाब में कुछ भूले-भूले से लोग नज़र आ गए
....मुझे फिर दीवानगी के दिन याद आ गए ..
...अब के बरस हवाएं गरम रही
.. मेरे हिस्से के बादल  कहा छा गए....